Cane UP:किसान भाई इस समय अपनी गन्ने की फसल में लगने वाले रोगों से बेहद परेशान है और ऐसे में सितंबर के महीने में गन्ने की फसल पर कई तरह के कीटों का हमला होता है। ये कीट न सिर्फ पत्तियों को चबाते हैं बल्कि रस भी चूसते हैं। पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगता है। पत्तियों के पीले होने के बाद प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। पत्तियां भोजन बनाना बंद कर देती हैं। इसका सीधा असर पौधे पर पड़ता है। पौधा कमजोर होकर मर जाता है और उत्पादन में भारी गिरावट आती है। ऐसे में जरूरी है कि समय रहते ऐसे कीटों का उपचार किया जाए।
गन्ने की फ़सल ये रोग हो सकता है घातक
यूपी गन्ना शोध संस्थान में तैनात कृषि वैज्ञानिक डॉ. नीलम कुरील ने बताया कि इन दिनों रस चूसने वाले कीटों के अलावा पत्ती कुतरने वाले कीट भी गन्ने की फसल को प्रभावित कर रहे हैं।
यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान करना बेहद जरूरी है। बरसात के मौसम में रस चूसने वाले कीट मिलि बग, पत्ती कुतरने वाला टिड्डा और आर्मी वर्म गन्ने की फसल में प्रभावी हो जाते हैं। इनकी रोकथाम बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि गन्ने में छिद्र बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। मिलि बग कीट गन्ने की गांठों पर चिपक जाता है और रस चूसना शुरू कर देता है। इसके बाद धीरे-धीरे पौधा कमजोर होने लगता है। पत्तियां काली पड़ने लगती हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है और पौधा नष्ट हो जाता है।
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ऐसे करें इन कीटों कि रोकथाम
डॉ. नीलम कुरील ने बताया कि गन्ने की पत्तियों को कुतरने वाले टिड्डे और आर्मी वर्म भी फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ये कीट धीरे-धीरे पत्तियों को कुतरते हैं और पौधा पर्याप्त मात्रा में भोजन ग्रहण नहीं कर पाता। इसके बाद पौधा कमजोर होकर सूख जाता है। उन्होंने बताया कि रस चूसने वाले और पत्ती कुतरने वाले कीटों पर समय रहते नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। नहीं तो यह फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
नियंत्रण:-
इन पर नियंत्रण के लिए एक हेक्टेयर में क्लोरोपायरीफास 20 ईसी की पांच लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या फिर 750 मिली रॉकेट को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर खेत में छिड़काव किया जा सकता है। इसके अलावा इमिडा क्लोप्रिड नामक कीटनाशक की 200 मिली मात्रा 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है। अगर छिड़काव के बाद बारिश हो जाए और कीट दोबारा आने लगें तो कीटनाशक का छिड़काव 20 से 25 दिन का अंतराल रखकर करना चाहिए।